About kabir in hindi – कबीरदास का जन्म सन् 1440 में वाराणसी में हुआ था। वे एक प्रसिद्ध कवी और संत थे। उनका धर्म इस्लाम था। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं – कबीर ग्रन्थावली , अनुराग सागर , सखी ग्रन्थ और बीजक हैं।
तो आइए जानते है कबीर के कुछ अनमोल विचार (Kabir ke Dohe in hindi)
1 – जिही जिवरी से जाग बँधा, तु जनी बँधे कबीर | जासी आटा लौन ज्यों, सों समान शरीर ||
अर्थ-जिस भ्रम तथा मोह की रस्सी से जगत के जीव बंधे है | हे कल्याण इच्छुक ! तू उसमें मत बंध | नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है, वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर – शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा हैं |
2 – बन्दे तू कर बन्दगी, तो पावै दीदार | औसर मानुष जन्म का, बहुरि न बारम्बार ||
अर्थ-हे दास ! तू सद्गुरु की सेवा कर, तब स्वरूप-साक्षात्कार हो सकता है | इस मनुष्य जन्म का उत्तम अवसर फिर से बारम्बार न मिलेगा |
अर्थ-हे दास ! तू सद्गुरु की सेवा कर, तब स्वरूप-साक्षात्कार हो सकता है | इस मनुष्य जन्म का उत्तम अवसर फिर से बारम्बार न मिलेगा |
3 -गारी ही से उपजै, कलह कष्ट औ मीच | हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच ||
अर्थ-गाली से झगड़ा सन्ताप एवं मरने मारने तक की बात आ जाती है | इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह सन्त है, और (गाली गलौच एवं झगड़े में) जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है |
अर्थ-गाली से झगड़ा सन्ताप एवं मरने मारने तक की बात आ जाती है | इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह सन्त है, और (गाली गलौच एवं झगड़े में) जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है |
4 -जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय | जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय ||
अर्थ-‘आहारशुध्दी:’ जैसे खाय अन्न, वैसे बने मन्न लोक प्रचलित कहावत है और मनुष्य जैसी संगत करके जैसे उपदेश पायेगा, वैसे ही स्वयं बात करेगा | अतएव आहाविहार एवं संगत ठीक रखो |
अर्थ-‘आहारशुध्दी:’ जैसे खाय अन्न, वैसे बने मन्न लोक प्रचलित कहावत है और मनुष्य जैसी संगत करके जैसे उपदेश पायेगा, वैसे ही स्वयं बात करेगा | अतएव आहाविहार एवं संगत ठीक रखो |
5 –कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ जो कुल को हेत | साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत ||
अर्थ-गुरु कबीर साधुओं से कहते हैं कि वहाँ पर मत जाओ, जहाँ पर पूर्व के कुल-कुटुम्ब का सम्बन्ध हो | क्योंकि वे लोग आपकी साधुता के महत्व को नहीं जानेंगे, केवल शारीरिक पिता का नाम लेंगे ‘अमुक का लड़का आया है’ |
6 -कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय | साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय ||
अर्थ- उल्टी-पल्टी बात बकने वाले को बकते जाने दो, तू गुरु की ही शिक्षा धारण कर | साकट (दुष्टों)तथा कुत्तों को उलट कर उत्तर न दो |
7 -धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर | अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर ||
अर्थ- धर्म (परोपकार, दान सेवा) करने से धन नहीं घटना, देखो नदी सदैव बहती रहती है, परन्तु उसका जल घटना नहीं | धर्म करके स्वयं देख लो |
अर्थ- धर्म (परोपकार, दान सेवा) करने से धन नहीं घटना, देखो नदी सदैव बहती रहती है, परन्तु उसका जल घटना नहीं | धर्म करके स्वयं देख लो |
8 -ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय | औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय ||
अर्थ- मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो|
अर्थ- मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो|
9 -जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ ||
अर्थ- जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।
अगर आप कबीर के और भी दोहे पढ़ने के इच्छुक है तो पढ़े यह किताब – Kabeer Dohawali
धन्यवाद !
अमित त्रिपाठी