चिपको आन्दोलन हिंदी में | Chipko Movement in hindi
यह बात बहुत पुरानी है आज से बहुत वर्ष पहले गढ़वाल की पहाड़ियों में एक गांव बसा था गांव का नाम था रैंणी, चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ घने जंगल झर-झर बहते झरने और नदी नाले थे घाटियों में बहती हुई हवा फूलों की सुगंध को चारों ओर फैला देती थी। बहुत ही सुंदर था यह गांव इस गांव के लोगों का काम था खेती-बाड़ी और पशुपालन करना उनकी सारी जरूरतें जंगल से ही पूरी होती थी दिन भर जंगलों और खेतों में काम करने के बाद लोग जब शाम को अपने घर वापस आते तो उनके नृत्य और लोक गीतों की मधुर आवाज सारे पहाड़ों में गूंजने लगती। जंगल ही इनका सब कुछ था उन्हें जंगल से वैसा ही लगाव था जैसा अपने परिवारजनों से था जंगल के पेड़ उनके जीवन का अंग थे।
रैंणी गांव के लोगों का जीवन बड़े ही संतोष से बीत रहा था इसी गांव में गौरा देवी नाम की एक युवती रहती थी वह बड़ी बहादुर और मेहनती थी गांव के और लोगों की तरह वह भी दिन भर जंगल में ही रहती थी जलाने के लिए सूखी लकड़ियां, फल-फूल, कंदमूल और शहद इकट्ठा करती थी।
Chipko Movement in hindi
एक दिन की बात है हमेशा की तरह गौरा अपनी सहेलियों के साथ जंगल में गई थी, गौरा और उसकी सहेलियां गूलर के फलों को इकट्ठा करने के लिए जंगल में काफी दूर निकल गई, घूमते-घूमते वह अलकनंदा नदी के किनारे पहुची यहाँ उन्होंने देखा बाहर से आये लोग जंगल के पेड़ काटने की तैयारी कर रहे है फिर क्या था गौरा देवी ने योजना बनायी की गाँव जाकर और लोगो को बुलाया जाये ताकि इन लोगो को पेड़ काटने से रोक सके और अपनी सभी सहेलियों के साथ फौरन अपने गांव की ओर चल पड़ी कटीली झाड़ियों में उनके कपड़े फट गए, खरोंचे लगी, प्यास के मारे उनका बुरा हाल हो गया, पथरीली जमीन से पांव लहूलुहान हो गए मगर बिना रुके वह दौड़ती रही दौड़ती रही उनके सामने एक ही लक्ष्य था अपने पेड़ों को कटने से बचाना।
थकी-हारी जब वह गांव में पहुंची तो दोपहर हो चुकी थी पुरुष काम करने खेतों में गए हुए थे इसलिए एक भी पुरुष उस समय गांव में नहीं मिला और फिर गौरा देवी चल पड़ी जंगल को बचाने उसके साथ 21 स्त्रियाँ और 7 बच्चे थे सभी के सभी निहत्थे थे। उन्हें एक तरकीब सूझी सबसे पहला काम उन्होंने यह किया कि जगह-जगह पत्थरों के ढेर लगा कर उन्होंने रास्तों को लगभग बंद कर दिया ताकि शहर के लोग यदि उन कटे पेड़ों को ले जाना भी चाहें तो यह संभव ना हो सके अब सारी स्त्रियां आगे बढ़ी और पहुंची उस जगह पर जहां पेड़ काटे जा रहे थे उन्होंने बाहर से आये लोगो को रोका और कहा – ‘ये पेड़ हमारे भाई है और इनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है इन्ही पेड़ों के कारण हम श्वांश लेते है और यही पेड़ हमे फल भी देते है इन्हें हम नही काटने देंगे भले ही इसके लिए हमे अपने प्राण ही क्यों न देने पड़ जाएँ’ और ऐसा कहते ही सभी बच्चे और स्त्रियाँ पेड़ों से चिपक गयी। पेड़ काटने आये लोगो ने उन्हें हटाना और उनसे झगड़ना शुरू कर दिया। इधर जंगल में यह हो रहा था और इधर आस-पास के गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई गांव से लोग हथियार लेकर वहां आने लगे जब पेड़ काटने वालों ने देखा कि अब उनकी दाल नहीं गल सकती तो फिर क्या था उन्होंने वहां से भागने में ही अपनी भलाई समझी और सर पर पाँव रखकर भाग खड़े हुए।
सभी ने गौरा देवी और स्त्रियों के साहस की पूरी-पूरी प्रशंसा की तो दोस्तों इस तरह इसी रैणी गांव से शुरुआत हुई चिपको आंदोलन की जो आज सारे संसार में प्रसिद्ध हो गया है।
अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – Chipko Movement Wikipedia in hindi
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