रानी पद्मिनी उर्फ़ पद्मावती का इतिहास

यह कहानी है चित्तौड़ की खूबसूरत रानी पद्मावती और उनकी खूबसूरती के पीछे पागल सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की, रानी पद्मावती जिनको पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है इनका नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया है रानी पद्मावती के पिता सिंध प्रांत के राजा थे जो आज के समय में श्रीलंका में पड़ता है उनका नाम गंधर्व सेन था और माता का नाम चंपावती था. रानी पद्मावती बाल्यकाल से ही अत्यंत खूबसूरत और मनमोहन थी महाराज गंधर्व सेन ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर रचाया था जिस में भाग लेने के लिए भारत के अलग-अलग राज्यों से बड़े-बड़े राजा महाराजा आए हुए थे, उसी स्वयंवर में मौजूद थे चित्तौड़ के राजा राजा रवल रतन सिंह, रानी पद्मावती का विवाह स्वयंवर विजेता चित्तौड़ के राजा रवल रतन सिंह के साथ बड़े ही धूमधाम से हुआ।


राजा रतन सिंह एक बहादुर और साहसी योद्धा थे वह एक प्रिय पति होने के साथी ही एक बेहतर शासक भी थे वे चित्तौड़ के राज्यों को बड़े कुशल तरीके से चला रहे थे उनके शासन में वहां की प्रजा हर तरीके से सुखी थी राजा रतन सिंह को कला में भी काफी रुचि थी उनके दरबार में काफी बुद्धिमान लोग थे उनमें से एक प्रसिद्ध संगीतकार राघव चेतन भी मौजूद थे जो रतन सिंह के काफी प्रिय थे ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं थी की एक राघव चेतन एक जादूगर भी था वह अपनी इस कला का उपयोग शत्रुओं को चकमा देने या अचंभित करने के लिए आपातकालीन समय में इस्तेमाल करता था एक दिन राघव चेतन काला जादू करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया जब राजा को इस बारे में पता चला कि राघव चेतन गुप्त रुप से काला जादू करता है राजा ने उसे राज्य से अपमानित करके निकाल दिया इसके बाद राघव चेतन ने दिल्ली की तरफ जाने की ठानी और वहाँ जाकर वह दिल्ली के पास एक घने जंगल में छिपा रहा जहाँ सुलतान (अलाउद्दीन खिलजी) अक्सर शिकार के लिए आया करता था एक दिन सुलतान शिकार करने पहुचे ही थे तभी राघव चेतन ने बाँसुरी बजाना शुरू कर दिया बाँसुरी की आवाज सुनकर सुल्तान ने बाँसुरी बजाने वाले को ढूढने का आदेश दिया तब राघव चेतन स्वयं उनके सामने आए तभी सुल्तान ने उससे अपने साथ दिल्ली के दरबार में आने का आदेश दिया और दिल्ली जाकर राघव चेतन ने चित्तौड़ राज्य की सैन्य शक्ति, चित्तौड़ की सुरक्षा, वहाँ की संपत्ति और वहाँ के साम्राज्य से जुड़ा एक-एक राज्य खोल दिया यहाँ तक की राघव चेतन ने दिल्ली के सुल्तान को चित्तौड़ के राजा रवल रतन सिंह की धर्मपत्नी रानी पद्मिनी की खूबसूरती के बारे में भी बताया उनकी ख़ूबसूरती के बारे में सुनने के बाद अलाउद्दीन उन्हें मन ही मन चाहने लगा था राघव चेतन की बातें सुनकर अलाउद्दीन खिलजी ने कुछ ही दिनों में चित्तौड़ पर आक्रमण करने का मन बना लिया और अपनी एक विशाल सेना चित्तौड़ के लिए रवाना कर दी।


चित्तौड़ पहुचते ही अलाउद्दीन के हाथ निराशा लगी क्योंकि उन्होंने पाया की चित्तौड़ को चारों तरफ से सुरक्षा प्रदान की गई है लेकिन वो रानी पद्मिनी की सुन्दरता को देखने का और इंतजार नहीं कर सकता था  इसलिए उसने राजा रतन सिंह के लिए यह संदेश भेजा की वह रानी पद्मिनी को बहन मानते हैं और उनसे मिलना चाहते हैं खिलजी के इस अजीब मांग को राजपूत मर्यादा के विरुद्ध बताकर राजा रतन सिंह ने ठुकरा दिया लेकिन निराश रतन सिंह को अपने साम्राज्य को अलाउद्दीन के प्रकोप से बचाने का एक मौका दिखाई दिया रानी पद्मावती सुल्तान को अपनी झलक दिखाने को तैयार तो हो गई लेकिन केवल प्रतिबिम्ब में इसके लिए किले के एक ऊँचे बुर्ज में अलाउद्दीन खिलजी को खड़ा किया गया उसके सामने एक आईना लगा दिया गया वहाँ बुर्ज के एकदम नीचे एक तालाब था जो बुर्ज में लगे आईने में साफ दिखाई देता था तालाब के किनारे रानी पद्मावती खड़ी हो गई रानी पद्मावती का प्रतिबिम्ब तालाब के पानी में पड़ा और तालाब का प्रतिबिम्ब आईने में दिखाई दिया और इस तरह पहली बार सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती के रूप को देखा पद्मावती के रूप के बारे में सुल्तान खिलजी ने जितना सुना था उससे कहीं ज्यादा पाया पद्मावती को देखते ही अलाउद्दीन ने उसे अपना बनाने की ठान ली शर्त के अनुसार चित्तौड़ के महाराजा ने अलाउद्दीन खिलजी को आईने में रानी पद्मावती का प्रतिबिंब दिखा दिया और फिर अलाउद्दीन खिलजी को पूरे मेहमान नवाजी के साथ पुरे चित्तौड़ जिले के 7 दरवाजे पार करा कर उनकी सेना के पास छोड़ने गये इसी अवसर का लाभ उठाकर अलाउद्दीन ने राजा रतन सिंह को बंदी बना लिया और उसके बाद उसने संदेश भिजवाया की राजा रतन सिंह को अगर देखना है तो रानी पद्मावती को तुरंत अलाउद्दीन खिलजी के खिदमत में किले के बहार भेज दिया जाए रजा रतन सिंह को अलाउद्दीन खिलजी की गिरफ्त से शकुशल मुक्त कराने के लिए रानी पद्मावती ने सोनगढ़ के चौहान राजपूत, जनरल गोरा और बादल के साथ मिलकर सुलतान को उसके ही खेल में हराने की ठानी और कहा कि अगली सुबह रानी पद्मावती को उनके यहां भेज दिया जाएगा और फिर 150 पालकी मंगवाई गई और उन्हें किले से अलाउद्दीन के कैंप तक ले जाया गया लेकिन पालकी के अन्दर रानी पद्मावती और उनकी दसियों के भेष में लड़ाके योद्धा मौजूद थे योद्धाओं ने दिल्ली की सेना में आक्रमण कर दिया और इसी चालाकी से राजा रतन सिंह को अलाउद्दीन की गिरफ्त से छुड़ा लिया गया और रतन सिंह को सुरक्षित रूप से महल पंहुचा दिया गया।


कहा जाता है कि वासना और लालच इंसान की बुद्धि हर लेती है अलाउद्दीन खिलजी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. सुल्तानपुर को जब खबर लगी की उसके साथ छल हुआ है तो इस बात को सुनकर सुल्तान आग बबूला हो गया और उसने तुरंत ही चित्तौड़ पर आक्रमण करने का निर्णय लिया रतन सिंह की सेना सुल्तान की सेना से बहुत छोटी थी लेकिन रतन सिंह के पास युद्ध के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था और उन्होंने युद्ध का आदेश दिया और किले का दरवाजा खोलकर युद्ध के लिए तैयार हो गए किले का दरवाजा खुलते ही अलाउद्दीन और उसकी सेना ने आक्रमण कर दिया इस खतरनाक युद्ध में पराक्रमी राजा रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए उनकी सेना भी हार गई और अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के किले को लूट लिया युद्ध में राजा रतन सिंह और अन्य राजपूत योद्धा के मारे जाने की खबर सुनकर रानी पद्मावती ने जौहर करने का निर्णय लिया जौहर एक ऐसी प्रक्रिया है जिस में सारी महिलाएं अपने दुश्मन के साथ रहने की बजाय स्वयं को विशाल अग्निकुंड में न्योछावर कर देती हैं जब अलाउद्दीन खिलजी किले के अन्दर प्रवेश प्रवेश करता है तब उसके हाथ लगती है सिर्फ निराशा, धुआं और राख कहा जाता है आज भी चित्तौड़ की महिलाओं को और रानी पद्मावती के जौहर करने की बात को लोग आज भी गर्व से याद करते हैं कहते हैं राजपूत सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं।

Leave a Comment