चिंता और चिंतन के बीच क्या अंतर है?

दोस्तों जब आप सुबह अपने काम पर निकलते हैं तो काफी चीजें साथ रखते हैं जैसे – बाइक चलाते हैं तो हेलमेट लगाते हैं, मोबाइल फोन रखते हैं और घड़ी पहनते हैं, बैग या लैपटॉप लेकर चलते हैं या कुछ और सामान आप ले कर के चलते हैं मगर सुबह से शाम तक जहां भी मौका मिलता है आप उन्हें कहीं पर रख देते हैं शाम को वापस घर आकर फिर अगले दिन के लिए रख देते हैं.

चिंता और चिंतन के बीच क्या अंतर है?

यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो इनका वजन लगातार बढ़ता चला जाएगा और आप चाहे जितने भी बलशाली हो आप इनका वजन नहीं उठा पाएंगे। इसका मतलब है इन्हें रखना और उतारना जरूरी है तभी उन्हें अगले दिन एंजॉय कर पाते हैं. इसी तरह से यदि आपके दिमाग में कोई भी चैलेंज या परेशानी है और आप इसे हमेशा अपने दिमाग में लेकर चलते हो तो आपका स्वास्थ और मानसिकता खतरे में हैं.

दोस्तों आपकी शारीरिक और मानसिक सुरक्षा आपकी जिम्मेदारी है इसके लिए चाहे जो भी समस्या है उसे रात में सोने से पहले अपने दिमाग से सामान की तरह उतार दें ताकि नींद गहरी आ सके क्योंकि किसी भी समस्या का समाधान शांत मन और शांति से निकलता है इसलिए उस पर चिंता नहीं चिंतन करें “ऐसा क्यों हुआ” इससे चिंता पैदा होती है और चिंता से अशांति रहती है “इससे कैसे बाहर निकला जा सकता है” ऐसा कहकर चिंतन पैदा होता है और चिंतन समाधान लाता है जो लोगों को सफल बनाता है अब आपकी बारी है.

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