Haryana Day विशेष: हरियाणा का जन्म और इतिहास
1 नवंबर 1966 का दिन, इस दिन हुआ था एक ऐतिहासिक फैसला जिस ने बदल दी पूरे उत्तर भारत की राजनीतिक, कुछ झगड़े थे जिनको सुलझा दिया गया और कुछ नए झगड़ों के बीज बो दिए गए थे. जी हां दोस्तों मैं बात कर रहा हूं हरियाणा के जन्म के बारे में 1 नवंबर 1966 को संसद में एक फैसला लिया गया जिसके अनुसार पंजाब प्रांत को अलग कर हरियाणा और हिमाचल राज्य बना दिए जाएंगे.
बंटवारा क्यों हुआ? क्या झगड़ा था? इन सब बातों को जानने के लिए पोस्ट को पूरा पढ़ें.
दोस्तो आज जहां हरियाणा है उसे अंग्रेजों ने यहां के लोकल राजाओं से जीतकर 1858 में पंजाब सूबे में मिला दिया था क्योंकि यहां के लोगों ने 1857 की क्रांति में बहुत बढ़ चढ़कर भाग लिया था और अंग्रेजों के लिए काफी मुश्किलें खड़ी की थी.
तब से यहां पंजाबी बोलने वालों और हिंदी मतलब हरियाणवी बोलने वालों के बीच में काफी झगड़े और खींचातानी रहती थी. 1947 में देश आजाद हो गया और हिंदी और पंजाबी बोलने वाले अलग-अलग राज्य की मांग उठाने लगे.
दोस्तों 1948 में पहली बार मास्टर तारा सिंह ने अलग पंजाब सूबे की मांग की थी. खींचातानी थोड़ी और ज्यादा बढ़ने लगी तो उस समय के पंजाब के चीफ मिनिस्टर भीम सेन सच्चर ने पंजाबी और हिंदी दोनों भाषाओं के लोगों को अलग-अलग करने का सुझाव दिया. उनके अनुसार हिंदी भाग में रोहतक, गुड़गांव करनाल और नारायण गढ़ तहसील आते थे. यह डिसाइड किया गया कि पंजाब साइड वालों की ऑफिशल लैंग्वेज रहेगी पंजाबी और हिंदी साइड वालों की ऑफिशल लैंग्वेज हिंदी होगी.
लेकिन यह फार्मूला ज्यादा दिन तक चला नहीं. हिंदी साइड वालों ने इसे यह कहकर मना कर दिया की सभी हिंदी भाषी लोग इसमें शामिल नहीं हो पा रहे थे. फिर इसके बाद 25 दिसंबर 1953 में भारत सरकार ने एक कमीशन का गठन किया ताकि वह लोग लैंग्वेज और कल्चर के हिसाब से सही पहचान कर सकें.
दोनों तरफ के लोग कमीशन के पास पहुंचे लेकिन इस बार कमीशन ने मना कर दिया कि बटवारा भाषा के आधार पर बिल्कुल नहीं होगा यह देश के हित में नहीं है. उसके बाद झगड़े चलते रहे.
1956 में पंजाब सरकार ने सेंटर को कहा कि अब और ज्यादा हम सहन नहीं कर पाएंगे हमें हिंदी और पंजाबी दो अलग-अलग एरिया में बांट दिया जाए. यह बात सेंटर ने मान ली, 1960 तक पहुंचते-पहुंचते अलग प्रांत की डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ गई. लोग सत्याग्रह पर उतर आए, 50,000 से ज्यादा को जेल हो गई, कई जगह भूख हड़ताल हुई लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.
समय निकलता रहा और फिर 1965 में संत फतेह सिंह ने पंजाब सूबे के लिए सरकार को 25 दिन का अल्टीमेटम दिया और आमरण अनशन शुरू कर दिया. उसके आमरण अनशन से पंजाब साइड के हिंदी बोलने वाले सब नाराज हो गए क्योंकि उनको लगता था की अगर नया राज्य बनता है तो वह लोग माइनॉरिटी में आ जाएंगे.
उस समय की लोकल प्रेस भी बंटवारे के खिलाफ थी क्योंकि लोगों को लगता था कि अगर बंटवारा हुआ तो कहीं फिर मार काट ना हो जाए.
आखिर में लोगों के आंदोलन के आगे सरकार को झुकना पड़ा. सरकार ने हुकुम सिंह के नेतृत्व में 23 सितंबर 1965 को एक और कमेटी बनाई. 17 अक्टूबर 1965 को रोहतक में एक मीटिंग हुई जिसमें 3 प्रस्ताव पास किए गए-
- 1 नया हिन्दी राजी बनाया जाए जिसमें पंजाब, दिल्ली, राजस्थान और यूपी के सभी हिंदी बोलने वाले इलाकों को शामिल किया जाए.
- अगर यूपी और राजस्थान मना करते हैं तो पंजाब के सारे हिस्से एक नए राज्य में शामिल किए जाने चाहिए जहां हिंदी बोली जाती है.
- एक हरियाणा प्रांत बने और हर जगह का हिंदी स्पीकिंग एरिया उसमे मिलाया जाए.
हुकुम सिंह कमेटी ने सारी बातें मान ली और एक बाउंड्री कमीशन का सुझाव दिया. 23 अप्रैल 1966 में हुकुम सिंह कमेटी के सुझाव के आधार पर जस्टिस जेसी शाह की अध्यक्षता में बाउंड्री कमीशन बनाया गया ताकि दोनों राज्यों के बीच बाउंड्री डिसाइड की जा सके.
इस रिपोर्ट के आधार पर 28 सितंबर को हिसार, रोहतक, गुड़गांव, करनाल, महेंद्रगढ़, जींद, नरवाना, अंबाला, जगाधरी, नारायणगढ़ और मनीमाजरा के कुछ हिस्सों को हरियाणा में शामिल किया गया लेकिन हाईकोर्ट दोनों का एक ही रखा गया और आखिरकार 1 नवंबर 1966 के दिन गवर्नमेंट ने द पंजाब रिकॉग्नाइजेशन पास किया जिसके हिसाब से पंजाब से हरियाणा और हिमाचल नाम के दो राज्य अलग कर दिये गए.
तो दोस्तों Haryana Day पर खास, हरियाणा के बनने की यह कहानी आपको कैसी लगी? कमेंट में जरूर बताइए, धन्यवाद.
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इस दी गई जानकारी के लिए आपका बहुत धन्यवाद।